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Monday, 31 October 2022

कैलाश मानसरोवर के दर्शनीय स्थल | Kailash Mansarovar tourist place in hindi

 

कैलाश मानसरोवर के दर्शनीय स्थल | Kailash Mansarovar tourist place in hindi

कैलाश मानसरोवर के दर्शनीय स्थल  Kailash Mansarovar tourist place in hindi 

सनातन धर्म में कैलाश का अपना महत्व रहा है. 22000 फीट ऊंचे इस पर्वत को कैलाश कहा जाता है, जिसका सम्बन्ध आदियोगी शिव से माना जाता है. ये पर्वत तिब्बत में त्रान्शिमाल्या का एक अंश है. काफी ऊंचे और ठन्डे स्थान पर ये तीर्थ स्थल होने की वजह से प्रति वर्ष यहाँ बहुत कम ही तीर्थ यात्री आ पाते हैं. इसके लिए यूपी सरकार ने हालही में एक बड़ा फैसला लिया है.

kailash mansarovar

(Kailash Mansarovar yatra)

मानसरोवर यात्रा मुख्यतः दो चीजों के लिए बहुत विख्यात है. प्रथमतः शिवस्थल कैलाश की परिक्रमा करना और दूसरा मानसरोवर झील में पवित्र स्नान करना. ऐसा माना जाता है कि इस सरोवर में स्नान करने से जन्म- जन्मान्तर के पाप कट जाते है और मुक्ति की प्राप्ति होती है. ये तीर्थ स्थल 18 से 70 वर्ष के बीच के लोगों के लिए हैं. 70 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्गो को सरकार द्वारा यहाँ आने की अनुमति नहीं होती है. यहाँ पर कई एसी बसें जाती हैं. साल 2014 में ये यात्रा मई में शुरू हुयी थी और सितम्बर तक चली. इस तीर्थ यात्रा के लिए भक्तों को बहरत के एक्सटर्नल अफेयर्स मंत्रालय में अर्जी देनी होती है.

कैलाश मानसरोवर के दर्शनीय स्थल (Kailash Mansarovar tourist place in hindi)

कैलाश मानसरोवर के मुख्य दर्शन स्थल कैलाश प्रकृति से पूर्ण स्थल है. यहाँ के मुख्य दर्शन स्थल निम्नलिखित हैं.

  • गौरी कुंड : इस कुंड की चर्चा शिव पुराण में की गई है, तथा इस कुंड से भगवान् गणेश की कहानी भी संलग्न है. ऐसा माना जाता है कि माता पार्वती ने इसी जगह पर भगवान गणेश की मूर्ति में प्राण फूँका था. इन पौराणिक कहानियों से संलग्न होने की वजह से इस स्थान का अध्यात्मिक दृष्टिकोण से बहुत ही गहरा महत्व है. यहाँ पर जाने वाले लोगों को इस कुंड के जल की सतह पर छोटा कैलाश के शिखर का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है. ये दृश्य अत्यंत मनोरम होता है.
  • मानसरोवर झील : ये झील कई तरह के पौराणिक कथाओं में वर्णित है. प्रतिवर्ष कई श्रद्धालू केवल इसमें स्नान करने के लिए आते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस झील में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं के सारे पाप कट जाते हैं और मरणोपरांत उनकी आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है. ऐसा माना जाता है कि कई सनातन देवी देवता इस झील में स्नान करने आया करते थे. अतः ये झील सदैव दैवी शक्तियों और पवित्रताओं का केंद्र रहा है.
  • राक्षस तल : राक्षस तल 4115 मीटर ऊपर स्थित है. इस स्थान का सम्बन्ध लंकापति रावण से माना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी जगह पर तप कर के लंकापति रावण ने भगवान् शिव को प्रसन्न किया था और शिव प्रकट हुए थे. इसके उपरान्त रावण ने भगवान् शिव को कैलाश छोड़ कर लंका चलने का आग्रह किया था. भगवन शिव इस शर्त पर रावण के लंका जाने के लिए राजी हुए थे कि रावण बीच में पड़े मार्ग में कहीं भी उसे धरती पर नहीं रखेंगे.
  • कैलाश परिक्रमा : यहाँ पर हिन्दू, जैन और बौद्ध तीनो धर्म के अनुयायी तीर्थ यात्रा के लिए आते हैं. हिन्दुओं में ये मान्यता हैं कि ये स्थल भगवान् शिव से सम्बंधित है वहीँ बौद्ध धर्मनुययियो के अनुसार ये जगह शक्ति का केंद्र है. जैनियों की मान्यता ये है कि कैलाश पर उनके धर्म के संस्थापक रहा करते थे. ये बड़ी दिलचस्प बात है कि धर्म कोई भी हो किन्तु तीनों के अनुयायी इस जगह की परिक्रमा लगाते हैं.

कैलाश पहुँचने का तरीका (Kailash Mansarovar how to reach)

कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए भारत सरकार द्वारा व्यवस्थाएं की जाती हैं. लोग या तो सरकारी ज़रिये से इस जगह की यात्रा कर सकते हैं अथवा ख़ुद से भी जा सकते हैं.

  • उत्तराँचल पुलिस और आईटीबीपी की तरफ से भारत सरकार द्वारा ज़ारी कुमाओं मंडल विकास निगम जैसी योजनाओं के साथ श्रद्धालुओं को इस स्थान का दर्शन कराया जाता है.
  • ये यात्रा भारत और चीन के बीच समझौते के तहत होता है, अतः इस तीर्थ यात्रा को हर तरह की कूटनैतिक सुरक्षा दी जाती है.
  • एक यात्रा का कुल खर्च 65000 रूपए का होता है, जिसमे से 20- 25000 रूपए कई राज्य सरकारों द्वारा सब्सिडी के तौर पर दी जाती है.

इसके लिए भारत सरकार प्रति वर्ष जनवरी के महीने में विज्ञापन जारी करती है. इसके लिए दिए जा रहे आवेदन के लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लगता है. दस्तावेजों में 2 पासपोर्ट साइज़ की तस्वीर और वैद्य पासपोर्ट की आवश्यकता होती है. आवेदन का अंतिम समय प्रति वर्ष 15 से 20 मार्च के दौरान होता है. सभी चुने गये श्रद्धालुओं को अप्रैल के अंतिम दिनों में टेलीग्राम द्वारा चयन की सुचना दी जाती है, और मई के तीसरे सप्ताह के अन्दर एक 5000 का डिमांड ड्राफ्ट भेजने की बात कही जाती है. ये खर्च कुल यात्रा खर्च के साथ जोड़  दिया जाता है. ये चार्ज रिफंडेबल नहीं होता है. अतः किसी कारण वश यदि आवेदक यात्रा में नहीं जाता है तो उन्हें 5000 रूपए वापस नहीं किये जायेंगे.

कैलाश मानसरोवर पहुँचने के लिए नेपाल और चीन के बॉर्डर के पास से भी जाया जा सकता है.

दिल्ली से कैलाश मानसरोवर पहुँचने का तरीका (How to reach Kailash Mansarovar from delhi)

दिल्ली से कैलाश मानसरोवर की दूरी लगभग आठ सौ किमी की है. देश के किसी भी कोने से दिल्ली के लिए कई ट्रेने और हवाई जहाज मौजूद हैं. अतः दिल्ली आकर यहाँ से बस ट्रेन अथवा हवाई जहाज से कैलाश मानसरोवर जाया जा सकता है.  

  • ट्रेन से : दिल्ली से कैलाश मानसरोवर ट्रेन की सहायता से 10 घंटों में पहुँचा जा सकता है. कैलाश मानसरोवर का सबसे क़रीबी रेलवे स्टेशन लौकहा बाज़ार है. ये स्थान बागडोगरा हवाईअड्डा से 116 किमी की दूरी पर स्थित है.
  • बस से : दिल्ली से कई सरकारी अथवा प्राइवेट बसें कैलाश मानसरोवर तक जाती हैं. श्रद्धालु किसी तरह की बस की सहयता से कैलाश मानसरोवर पहुँच सकता है.
  • हवाई जहाज से : बागडोगरा हवाईअड्डा कैलाश मानसरोवर का सबसे नजदीकी हवाईअड्डा है. यहाँ पर दिल्ली से कुछ फ्लाइट्स जाती हैं. कैलाश मानसरोवर बागडोगरा हवाईअड्डा से 202 किमी की दूरी पर स्थित है. हवाई अड्डे से टैक्सी अथवा अन्य गाड़ियों से मानसरोवर पहुँचा जा सकता है.

कैलाश मानसरोवर का मौसम (Kailash Mansarovar yatra season)

तिब्बत शुष्क और ठण्ड प्रदेश है. अतः यहाँ जाने वाले श्रद्धालुओं को हर तरह के मौसम के लिए तैयार रहना पड़ता है. जून, जुलाई से सितम्बर के महीने तक यहाँ का तापमान 15 से 20 डिग्री के मध्य रहता है. इन महीनों में दोपहर में हवाएं चलती हैं तथा सुबह और शाम के समय का तापमान 0 डिग्री अथवा उससे भी कम हो सकता है.

सरकार द्वारा लिया गया फैसला (Kailash Mansarovar yatra government decision)

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए श्रद्धालुओं को एक लाख रूपए देने का ऐलान किया है. मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने पहले ही भाषण में योगी आदित्यनाथ का जीवन परिचय ने ये ऐलान किया. पहले ये आंकड़ा 50,000 रूपए का था. योगी आदित्यानाथ ने सत्ता में आते ही इस आंकड़े को दोगुणा कर दिया. आम तौर पर एक यात्रा में 2.5 लाख रूपए का खर्च होता है. सरकार द्वारा 1 लाख रूपए मिलने पर श्रद्धालुओं को आर्थिक सहयोग होगा और अधिक से अधिक लोग इस पुण्य का लाभ उठा पायेंगे.        

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